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Monday, March 28, 2011
इक बार के मिलने को ....
इक बार के मिलने को वो प्यार समझते है , पागल हैं मगर खुद को होशियार समझते हैं , चाहत की इबादत को जो रोग समझता है , हम ऐसे मसीहा को बीमार समझते हैं , ये ऊँचे घरानों के बिगड़े हुए लडके हैं , जो प्यार के मंदिर को बाजार समझते हैं , इस मुल्क के माथे पर दाग हैं वो 'अंजुम ', जो लोग फसानों को त्यौहार समझते हैं । पागल हैं मगर ................................. ।
किताबों के पन्ने .....
किताबों के पन्ने पलट कर सोचते हैं , यूँ पलट जाये जिन्दगी तो क्या बात है , तमन्ना जो पूरी हो ख्वाबों में , हकीकत बन जाये तो क्या बात है , कुछ लोग मतलब के लिए खोजते है मुझे , बिन मतलब कोई आये तो क्या बात है , क़त्ल कर के तो ले जायेंगे दिल मेरा , कोई बातों से ले जाये तो क्या बात है , जो शरीफों की शराफत में बात न हो , एक शराबी कह जाये तो क्या बात है , जिन्दा रहने तक तो ख़ुशी दूंगा सबको , किसी को मेरी मौत पर ख़ुशी मिल जाये तो क्या बात है ,
Thursday, March 24, 2011
शहीदों की चिताओं पर ------
शहीद होंगे किताबों पर मिट्टी में दफन होगा ,
चिता बनेगी कलमों से कागजों का कफन होगा ।
ये पंक्तियां हमें उन देशभक्ततों की याद दिलाती हैं जो हंसते -हंसते
फांसी के फंदे पर झुल गये थे ।उन देशभक्तों में राजगुरू ,भगतसिंह और सुखदेव आदि थे । भगत सिंह ने अंग्रेज अधिकारियों को कहा था कि वे उन्हें फांसी की बजाए गोली मारें और देखें कि भारतीय किस प्रकार से
अपने आदर्श के लिए मौत का भी खुशी से आलिंगन कर सकते हैं ।
भगत सिंह एक ऐसे का्रंतिकारी थे जो फांसी के समय हंसते हुए कह रहे
थे कि ,मुझे मरने का डर नहीं और इसका मतलब ये भी नहीं कि उन्हें अपनी जिंदगी से नफरत हैं ,उन्हें भी अपनी जिंदगी से प्यार हैं ।
कुछ वो लोग थे जो वक्त के सांचे में ढल गये ,
कुछ लोग वो भी थे जो वक्त के सांचे बदल गये ।
चिता बनेगी कलमों से कागजों का कफन होगा ।
ये पंक्तियां हमें उन देशभक्ततों की याद दिलाती हैं जो हंसते -हंसते
फांसी के फंदे पर झुल गये थे ।उन देशभक्तों में राजगुरू ,भगतसिंह और सुखदेव आदि थे । भगत सिंह ने अंग्रेज अधिकारियों को कहा था कि वे उन्हें फांसी की बजाए गोली मारें और देखें कि भारतीय किस प्रकार से
अपने आदर्श के लिए मौत का भी खुशी से आलिंगन कर सकते हैं ।
भगत सिंह एक ऐसे का्रंतिकारी थे जो फांसी के समय हंसते हुए कह रहे
थे कि ,मुझे मरने का डर नहीं और इसका मतलब ये भी नहीं कि उन्हें अपनी जिंदगी से नफरत हैं ,उन्हें भी अपनी जिंदगी से प्यार हैं ।
कुछ वो लोग थे जो वक्त के सांचे में ढल गये ,
कुछ लोग वो भी थे जो वक्त के सांचे बदल गये ।
Wednesday, March 23, 2011
पत्रकार आलोक तोमर का निधन
किश्तियां डूब जाती है ,तूफान चलें जाते है।यादें रह जाती हैं ,इंसान चले जाते हैं ।
हिन्दी पत्रकारिता के आधुनिक स्तंभ माने जाने वाले वरिष्ठ पत्रकार, अपनी बेबाक निर्भिक और धारधार पत्रकारिता करने वाले आलोक तोमर अपनी अनोखी लेखन शैली के लिए जाने जाते थे । उनका असमय चले जाना पत्रकारिता जगत के लिए दुःखद घटना है । उन्होनें सिनेमा ,इंटरनेट ,वेबपोर्टल समेत कई क्षेत्रों में काम किया है। 2000 में उन्होनें डेटलाईन इंडिया नामक इंटरनेट न्यूज एजेंसी की स्थापना की । कैंसर से लंबे समय से पीड़ित रहे तोमर का रविवार को दिल का दौरा पड़ने से बाना अस्पताल में निधन हो गया । वे 50 वर्ष के थे । प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े तोमर ने अपराध और सामाजिक सरोकार के मुद्दों से जुड़ी पत्रकारिता में अपना विशेष योगदान दिया। मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में 1960 में जन्मे तोमर ने हिन्दी पत्रकारिता में धारदार भाषा का नया रुप तैयार किया। वे विपरीत परिस्थितियों में भी काम के लिए जाने जाते रहे। उन्होने कई समाचार पत्रों में अपनी सेवाएं दी। जनसत्ता में अपनी रिपोर्ट के जरिए देश के कोने कोने में चर्चित हुए। वे एक ऐसी महान शख्सियत थे जिन्होंने पत्रकारिता जगत को एक नया आयाम दिया।
हिन्दी पत्रकारिता के आधुनिक स्तंभ माने जाने वाले वरिष्ठ पत्रकार, अपनी बेबाक निर्भिक और धारधार पत्रकारिता करने वाले आलोक तोमर अपनी अनोखी लेखन शैली के लिए जाने जाते थे । उनका असमय चले जाना पत्रकारिता जगत के लिए दुःखद घटना है । उन्होनें सिनेमा ,इंटरनेट ,वेबपोर्टल समेत कई क्षेत्रों में काम किया है। 2000 में उन्होनें डेटलाईन इंडिया नामक इंटरनेट न्यूज एजेंसी की स्थापना की । कैंसर से लंबे समय से पीड़ित रहे तोमर का रविवार को दिल का दौरा पड़ने से बाना अस्पताल में निधन हो गया । वे 50 वर्ष के थे । प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े तोमर ने अपराध और सामाजिक सरोकार के मुद्दों से जुड़ी पत्रकारिता में अपना विशेष योगदान दिया। मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में 1960 में जन्मे तोमर ने हिन्दी पत्रकारिता में धारदार भाषा का नया रुप तैयार किया। वे विपरीत परिस्थितियों में भी काम के लिए जाने जाते रहे। उन्होने कई समाचार पत्रों में अपनी सेवाएं दी। जनसत्ता में अपनी रिपोर्ट के जरिए देश के कोने कोने में चर्चित हुए। वे एक ऐसी महान शख्सियत थे जिन्होंने पत्रकारिता जगत को एक नया आयाम दिया।
Wednesday, March 16, 2011
अखरोट है खोजी पत्रकारिता : ऋषि पांडे
खोजी पत्रकारिता एक अखरोट की तरह है जिसको तोड़ने में तो काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है , लेकिन वह काफी स्वादिस्ट और ताकतवर होता है ये कहना है समरघोस समाचार पत्र के स्थानीय संपादक ऋषि पांडे का । वे चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की कार्यशाला के ८ वें दिन मुख्य अतिथि के तोर पर आये थे ।
उन्होंने कहा की खोजी पत्रकारिता में अपराध जगत के छुपे हुए रहस्यों को उजागर करना होता है । सच को बेनकाब करना होता है । उनके अनुसार अच्छे संवाददाता के पास समाचार अपने आप चलकर आते हैं । छोटे से छोटा सौर्स बड़ी से बड़ी सुचना दे सकता है ।
पांडे जी ने कहा की दुनिया में ऐसाकोई कागज नहीं है जिसकी फोटो स्टेट न की जा सकती हो । उन्होंने कहा की या तो इतने बड़े बन जाओ कि इंडस्ट्री को अपने अनुसार ढाल सको या फिर इसके अनुसार खुद ढल जाओ । उन्होंने मीडिया के विद्यार्थिओं को बताया कि उमा खुराना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये फेसला सुनाया कि स्टिंग ओपरेशन केवल संपादक की देखरेख में ही हो सकता है ।
इसका संचालन विभागाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह चौहान ने किया । इस मौके पर प्राध्यापक विकास सहारन , कृष्ण कुमार , सन्नी गुप्ता , राम मेहर और विद्यार्थी उपस्थित थे ।
उन्होंने कहा की खोजी पत्रकारिता में अपराध जगत के छुपे हुए रहस्यों को उजागर करना होता है । सच को बेनकाब करना होता है । उनके अनुसार अच्छे संवाददाता के पास समाचार अपने आप चलकर आते हैं । छोटे से छोटा सौर्स बड़ी से बड़ी सुचना दे सकता है ।
पांडे जी ने कहा की दुनिया में ऐसाकोई कागज नहीं है जिसकी फोटो स्टेट न की जा सकती हो । उन्होंने कहा की या तो इतने बड़े बन जाओ कि इंडस्ट्री को अपने अनुसार ढाल सको या फिर इसके अनुसार खुद ढल जाओ । उन्होंने मीडिया के विद्यार्थिओं को बताया कि उमा खुराना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ये फेसला सुनाया कि स्टिंग ओपरेशन केवल संपादक की देखरेख में ही हो सकता है ।
इसका संचालन विभागाध्यक्ष वीरेंद्र सिंह चौहान ने किया । इस मौके पर प्राध्यापक विकास सहारन , कृष्ण कुमार , सन्नी गुप्ता , राम मेहर और विद्यार्थी उपस्थित थे ।
Friday, March 11, 2011
लक्ष्य पर हो नजर : ओमप्रकाश
चौधरी देवीलाल विश्वविधालय के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग की प्रिंट एवं मीडिया की १५ दिवसीय कार्यशाला में त्रिवेणी के सचिव श्री ओमप्रकाश बच्चों से रूबरू हुए । उन्होंने कहा कि हमें पता होना चाहिए कि हमारा लक्ष्य क्या है ? ,हमें हर बुरी चीज में भी सकारात्मक चीज निकाल लेनी चाहिए ।
इसका संचालन पत्रकारिता एवं जनसंचार विभागाध्यक्ष श्री वीरेंद्र चौहान ने किया । ओमप्रकाश जी ने कहा कि नकारात्मकता के बिना सकारात्मकता के कोई मायने नहीं है । उन्होंने बताया कि हम यदि अपना सब कुछ लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लगा देते है तो जिसे हम असफलता मान रहे होते है वो भी सफलता के लिए आवश्यक होता है ।
उन्होंने कहा कि हमें सबसे पहले अपने आप से प्यार करना होगा ,अपने रोम रोम से मोहबत करनी होगी और अपना होना ही अच्छा लगना चाहिए । मान अपमान के बारे में उन्होंने कहा कि हमारी मर्जी के बिना कोई हमारा मान अपमान नहीं कर सकता है । सुख और दुःख हमारी अपनी भावना पर निर्भर करता है ।
उन्होंने कहा कि हमारे पास कुछ न होना ही अपने आप में भुत कुछ है । हमारे पास यदि बहुत कुछ होता तो हम एक रेंगने वाले कीड़े के समान ही होते ।
इस अवसर पर प्राध्यापक कृष्ण कुमार , विकास सहारन ,सन्नी गुप्ता ,राम मेहर ,पूनम कालेरा ,विभाग की शान बुजुर्ग छात्र रिटायर्ड फोजी श्री बस्तीराम औरविभिन छात्र उपस्थित थे ।
इसका संचालन पत्रकारिता एवं जनसंचार विभागाध्यक्ष श्री वीरेंद्र चौहान ने किया । ओमप्रकाश जी ने कहा कि नकारात्मकता के बिना सकारात्मकता के कोई मायने नहीं है । उन्होंने बताया कि हम यदि अपना सब कुछ लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लगा देते है तो जिसे हम असफलता मान रहे होते है वो भी सफलता के लिए आवश्यक होता है ।
उन्होंने कहा कि हमें सबसे पहले अपने आप से प्यार करना होगा ,अपने रोम रोम से मोहबत करनी होगी और अपना होना ही अच्छा लगना चाहिए । मान अपमान के बारे में उन्होंने कहा कि हमारी मर्जी के बिना कोई हमारा मान अपमान नहीं कर सकता है । सुख और दुःख हमारी अपनी भावना पर निर्भर करता है ।
उन्होंने कहा कि हमारे पास कुछ न होना ही अपने आप में भुत कुछ है । हमारे पास यदि बहुत कुछ होता तो हम एक रेंगने वाले कीड़े के समान ही होते ।
इस अवसर पर प्राध्यापक कृष्ण कुमार , विकास सहारन ,सन्नी गुप्ता ,राम मेहर ,पूनम कालेरा ,विभाग की शान बुजुर्ग छात्र रिटायर्ड फोजी श्री बस्तीराम औरविभिन छात्र उपस्थित थे ।
Wednesday, March 9, 2011
माँ
शख्त रास्तों में भी आसान सफर लगता है
ये मुझे माँ की दुआओं का असर लगता है
इक मुद्दत से मेरी माँ नहीं सोई जब मेने इक बार कहा था
माँ मुझे डर लगता है
जब टूटने लगे होसले तो ये यादरखना
बिन मेहनत के हासिल वो ताज नहीं होते
अँधेरे में भी ढूंड लेते हैं मंजिल अपनी
जुगनूँ कभी रौशनी के मोहताज नहीं होते
ये मुझे माँ की दुआओं का असर लगता है
इक मुद्दत से मेरी माँ नहीं सोई जब मेने इक बार कहा था
माँ मुझे डर लगता है
जब टूटने लगे होसले तो ये यादरखना
बिन मेहनत के हासिल वो ताज नहीं होते
अँधेरे में भी ढूंड लेते हैं मंजिल अपनी
जुगनूँ कभी रौशनी के मोहताज नहीं होते
१५ दिवसीय कार्यशाला
समाचार पत्रों की वेब साईट और वेब पोर्टल
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